Wednesday, May 30, 2018

kitta ghas

GHAAS wali series mein kuchh khas:

हाँ!
घास है सोलह आने वाली ख़ास
इसी घास को लालटेन में भर चिड़ैयाटांड़ मोड़ पर
नितीश बाबू ने लालू जी से कहा था कि इंटी-पिंटी-
पापड़-टिंटी-टाएँ-टूईं-ठस-इगली-आउट-गोयू तो
लालू जी ने कहा "कोई दीवाना कहता है कोई
पागल समझता है मगर बिहारों की बेचैनी को बस
बादल सिंह बरस जा ऐ बादल बरस जा वाला
किसान दाल कर मुँह में कपास"

हाँ!
घास है अली की नली वाली ख़ास
इसी घास में एक अली दमादम मस्त क़लन्दर अली
दमदम्मे बंदर लाल अली रखिओ न आ झूले लालन
सिंदरी दा शकी शाबाज़ क़ल्लंदर मेरे नस-नस में है
अली-अली हुज़ूर पादशाओ दा पादशा पैग़म्बर मुहम्मद
की शान के खिलाफ़ पैग़ाम देता है रे वो भी रमज़ान की
सेहरी को याद करके दोज़ख़ चाहिए या जन्नत दौनों में
ख़ुदा मरहूम झकास

Monday, May 28, 2018

कविता-कश्ती

घासम-घास है, ख़ासम-ख़ास है,
इसे न तोड़ो, ये पंक्ति उदास है:

घास है कितनी ख़ास
घास है कितनी ख़ास
वाह! वाह! वाह!
रौंदे जाने पर भी देती है
मखमली अहसास
हाँ!
घास है कितनी ख़ास
इसी घास को खाता है अश्व
और दौड़ता है अश्वमेध यज्ञ में
ताकि राम रख सकें
अखण्ड राजदंड अपने पास
हाँ!
घास है कितनी ख़ास
इसी घास को खाती है गौ
जिसका दूध पी कान्हा
रचते हैं गोपियों संग रास
हाँ!
घास है कितनी ख़ास
इसी घास पर लेट नव-युगल
देखते हैं सफ़ेद बादलों को और
रचते हैं हैं क्षणभंगुर प्रेम का
अमर इतिहास
हाँ!
घास है कितनी ख़ास
इसी घास पर गिरती है ओस
और सूरज को ले आती है
कितना निकट, कितना पास
हाँ!
घास है कितनी ख़ास
इसी घास पर पैर रख कोई
मसीहा आरूढ़ होता है धर्म पर
और दे जाता है पैग़म्बरी सम्भाष
हाँ!
घास है कितनी ख़ास
इसी घास में जीवन जीवंत हो
जब सुगबुगाता है तो पंछी
उड़ते हैं और उनके पीछे होता है
प्रचण्ड आकाश
हाँ!
घास है बहुत ख़ास
इसी घास में मेधा है, छल है,
कपट है, दूध है, पानी है,
रवानी है, कोई कहानी है जो
बुनती है रेशे-रेशे का पाश
हाँ!
घास है बहुत ख़ास
इसी घास में वायु, अग्नि, जल,
समीर, आकाश हो जाते हैं
पंचभूत और मिल जाती जीवन को
जीने की नैसर्गिक तलाश
हाँ!
घास है एकदम ख़ास
इसी घास की गोद में प्रलय है
पलता, साँस है पलती, यौवन है
बिखरता, बिजली है गिरती
और कभी-कभी तो कुछ हो न हो
घास ही रह जाती है करती हास
हाँ!
इसी घास को खाती है बकरी
जिसकी क़ुर्बानी दे-दे अल्लाह के
अल्लाह के पैग़ाम का उड़ाते हैं
बेइंतहा उपहास
हाँ!
घास है कितनी ख़ास
इसी घास को उखाड़ कर होता है
यज्ञ जिसकी अग्नि में पड़ता है
अर्घ्य और उठती धूम्र-पंक्ति कोई
जोगी जोग का करता है ह्रास

Sunday, May 27, 2018

कहानी मानहानि

कहानी २.

क्यों? कहाँ? कैसे? कब? फिर तो? अरे नहीं?

संशय? हाँ भाई हाँ. कितना? कोई नहीं?

कहानियों का सोर्स-पैरवी. ज़ोरदार कहानी।

कहानी सराए-फ़ानी

कहानी १.

आलोक झा और अमित शेखर मित्र थे. मित्र थे? पहला संशय, पहली कहानी. 

Saturday, May 26, 2018

अम्बर के शोलों में जीवन ही जीवन सजता है
कौन कहता है अम्बर का अम्बार धड़कता है:

सावन के गीत पीत और मीत मिलन की बेला
अब के सजन हम-तुम गाएंगे होरी बरसता है

Friday, May 25, 2018

ग़ज़लिया सल्तनत


गहरे पानी से किसको डर लगता है भई
पानी तो धो देता है दरपन हर दिन कई:

इतने गहरे मत उतरो कि डूब ही जाओ
आओ ज़रा किनारे बैठ मूँगफ़ली खाओ

गहरा पानी तेज़ बहाव क्या तेज़ बहाव
डूबना है तो पानी से क्या तुम कतराओ

उधर सूरज का डूबना इधर सितार झन
अबके बरस इतना ही सिंगार सजाओ

डूब-डूब जो पार हो वो इश्क़ है प्यारा
नाँव में चढ़ जो पार हुआ उससे शरमाओ

नदिया की उमंग कभी ख़ुशी कभी ग़म
सिनेमा के गीत भी ज़रा गा-गुनगुनाओ

कटता है सीना जब नदी का बाज़ू कटे
इस तरन्नुम को भेज भेजे से पार लगाओ

वो हताश उदास लिबास पहने कहाँ जाएं
आएं यां आएं उदासी उतार कर सताओ

नंगे पैर पानी में डाल छप-छप करते रहें
कोई छाप-तिलक ले कंगन खनखनाओ

उनका दिन हमारा गाँव राजी-खुशी ठाँव
फिर उनसे भी ऊपर कोई कवि नहाओ

कान्हा की चितवन गोपी का दरस लाज
कोई काज न कीजै बस राखिए न जाओ

गए वो मोरनी जंगल की ओर नाचने नाच
हमने कहा तो वो बोले आ साज लजाओ

शेखर गुलबी घाट गाँधी घाट रानी घाट
घाट-घाट का पानी पीओ और पिलाओ

स्वामी अमितानन्द सरस्वती शेखरोपदेश

स्वामी अमितानन्द सरस्वती शेखरोपदेश:

शब्दों के चयन में चुक जाता है मन 
स्वभाव और मन के बीच मरो चयन

चन्द्रम के 'म' मोहन है कान्हा के धन  
बंसी के संग रास पुरातन 'मो' के सन